hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चाँद से ज्यों छिन जाय चाँदनी

रास बिहारी पांडेय


चाँद से ज्यों छिन जाय चाँदनी
हो संगीत से दूर रागिनी
बादल से विलगे ज्यों दमिनी
टूटे हरेक कड़ी
तेरे बिन यूँ बीते हरेक घड़ी।

वे भी दिन थे पतझर में तू
सावन बन आई थी
इस नीरस जीवन में गंगा
बनकर लहराई थी
अब तो आँखें चातक जैसी
बारह मास गड़ी।

तुम बिन एक तरह लगता है
क्या फागुन क्या सावन
हर तस्वीर अधूरी जब से
टूटा मन का दर्पन
बनना था गलहार मेरा
किस मुंदरी में जड़ी।


End Text   End Text    End Text